Шукра нити 66

अन्वयः—पृथक् पृथक् क्रियाभिः कलाभेदस्तु जायते । यां यां कलां समाश्रित्य तन्नाम्ना जातिः उच्यते ॥ ६६ ॥
व्याख्या—पृथक् पृथक् = विविधाभिः, क्रियाभिः = व्यापारैः, कलाभेदस्तु —कलानाम् = शिल्पानाम्, भेदः= भिन्नता, तु, जायते = भवति, यां यां कलाम् = शिल्पविद्याम्, समाश्रित्य = अवलम्ब्य, तन्नाम्ना = तत्तदाख्यया, जातिः = कलानां भेदः, उच्यते = कथ्यते ॥६६ ॥

हिन्दी — किसी भी कला का भेद अलग-अलग व्यापार से ही बोध होता है और जिन कलाओं का आश्रय लेकर लोग जीविका चलाते हैं, उस कला के नाम से उसकी जाति का बोध होता है ॥६६॥

पृथगिति । पृथक् पृथक् विभिन्नाभिरित्यर्थः, क्रियाभिः अनुष्ठानैः कलाभेदस्तु जायते, यां यां क्रियां समाश्रित्य तन्नाम्ना तत्तदाख्ययेत्यर्थः, जाति: कलानामिति शेषः उच्यते ॥ ६६ ॥

Разницу между любым искусством можно понять по разным ремеслам и искусствам, которыми люди зарабатывают на жизнь, их принадлежность к той или иной ремесленной общине (जातिः — «каста», социальная группа) понимается по названию этого искусства.

Шукра нити 66
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