सुखार्थी चेत्त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी चेत्त्यजेत्सुखम् ।
सुखार्थिनः कुतो विद्या सुखं विद्यार्थिनः कुतः ॥
जिसे अपने इन्द्रियों की तुष्टि चाहिए, वह विद्या अर्जन करने के सभी विचार भूल जाए. और जिसे ज्ञान चाहिए वह अपने इन्द्रियों की तुष्टि भूल जाये. जो इन्द्रिय विषयों में लगा है उसे ज्ञान कैसा, और जिसे ज्ञान है वह व्यर्थ की इन्द्रिय तुष्टि में लगा रहे यह संभव नहीं
Тот, кто хочет чувственных удовольствий, должен забыть все мысли о приобретении знания. И тот, кто хочет знания, должен забыть о чувственных наслаждениях. У того кто занят наслаждением, откуда знание ? У того кто жаждет знанием откуда тяга к наслаждениям?
Чанакья Нити 10.3