जन्मजन्मनि चाभ्यस्तं दानमध्ययनं तपः।
तेनैवाभ्यासयोगेन देही वाऽभ्यस्यते।।
जन्म-जन्म तक अभ्यास करने पर ही मनुष्य को दान, अध्ययन और तप प्राप्त होते हैं। इसी अभ्यास से प्राणी बार-बार इन्हें करता है।
आशय यह है कि कई जन्मों तक दान, अध्ययन तथा तपस्या करने पर ही मनुष्य दानी बनता है, अध्ययन करता है और तपस्वी बनता है। ये गुण किसी एक जन्म में नहीं आते; कई जन्मों के अभ्यास से ही इनकी प्राप्ति होती है।
Человеком богатство, знания и аскетизм достигаются только после практики в процессе перерождения (जन्म-जन्म). Все живые существа только постоянной практикой достигают их.
Смысл в том, что только после многих рождений, занимаясь благотворительностью, учением и аскезой, человек становится добродетельным. Эти качества не приходят в одном рождении; Они достигаются только практикой многих перерождений.