वित्तं देहि गुणान्वितेषु मतिमन्नान्यत्र देहि क्वचित्
प्राप्तं वारिनिधेर्जलं घनमुखे माधुर्ययुक्तं सदा ।
जीवान्स्थावरजङ्गमांश्च सकलान्संजीव्य भूमण्डलं
भूयः पश्य तदेव कोटिगुणितं गच्छन्तमम्भोनिधिम्॥
हे विद्वान् पुरुष ! अपनी संपत्ति केवल पात्र को ही दे और दूसरो को कभी ना दे. जो जल बादल को समुद्र देता है वह बड़ा मीठा होता है. बादल वर्षा करके वह जल पृथ्वी के सभी चल अचल जीवो को देता है और फिर उसे समुद्र को लौटा देता है.
О мудрец ! Отдавай свое богатство только достойным и никогда не отдавайте его другим. Вода, которую океан дает облаку, очень сладкая. Проливая облака, он дает эту воду всем подвижным и неподвижным существам земли, а затем возвращает ее в море.
मतिमन्, गुणान्वितेषु वित्तम् देहि, न अन्यत्र क्वचित् देहि। वारिनिधेः जलम् घनमुखे माधुर्ययुक्तम् प्राप्तम्, सदा सकलान् स्थावरजङ्गमान् जीवान् भूमण्डलम् च संजीव्य, तद् भूयः एव कोटिगुणितम् अम्भोनिधिम् गच्छन्तम् पश्य।
मतिमन्- पु. लिं. सं. वि. ए. व. of- मतिमन्- мудрый, गुणान्वितेषु- पु. लिं. स. वि. ब. व. of गुणान्वित्- обладающий высокими качествами- गुण- качество, талант, अन्वित- владеющий- क. भू. धा. वि. of अनु+ इ- (इ- एति २ ग. प. प. идти)- गुणेन अन्वितः यः सः -बहुव्रीही स., वित्तम्- богатство, जलम्- вода, प्राप्तम्- получено- क. भू. धा. वि. of प्र+आप्- (आप्- आप्नोति ५ ग. प. प. получать), माधुर्ययुक्तम्- полный сладости- माधुर्य- сладость, युक्तम्- содержащий — क. भू. धा. वि. of युज्- युनक्ति- युंक्ते ७ ग. उ. प. соединять — माधुर्येण युक्तम्- तृ. तत्पुरुष स. , सदा- всегда, ежедневно