Чанакья Нити

Чанакья нити 14.11

अत्यासन्न: विनाशाय दूरस्था न फलप्रदाः |सेव्या मध्यमभावेन राजवह्निर्गुरुः स्त्रियः || राजा, आग , गुरु तथा स्त्रियों से अत्यन्त घनिष्ठता विनाशकारी होती है और इनसे दूरी बनाये रखना भी फलप्रद (फ़ायदेमन्द ) नहीं होता है | अतः इनकी सेवा तथा इनसे संपर्क मध्यम भाव से करनी चाहिये Atyaasannah = ati + aasannah. Ati = Слишком сильно. […]

Чанакья нити 14.9

दूरस्थोऽपि न दूरस्थो यो यस्य मनसि स्थितः।यो यस्य हृदये नास्ति समीपस्थोऽपि दूरतः।। जो ह्रदय में विधमान है वह दूर रहते हुए भी समीप है, लेकिन जो ह्रदय के समीप नहीं है वह पास रहते हुए भी दूर है| То, что в сердце — близко, хотя и далеко(физически), а то, что не в сердце, далеко, хотя […]

Чанакья 14.8

दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये।विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा।। व्यक्ति को कभी अपनी दानशीलता पर, अपने — तप, अपनी वीरता पर, अपनी बुद्धिमत्ता पर या अपनी नीतिपरकता पर अहंकार नही करना चाहिये क्योंकि इस संसार में एक से एक बढ़कर दानवीर हैं, तपस्वी हैं, शूरवीर हैं, विज्ञानी हैं, बुद्धिमान हैं और नीतिज्ञ […]

Чанакья нити 14.5

जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि।प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारे वस्तुशक्तितः।। जल में तेल, कपटी को बताया हुआ रहस्य, सुपात्र को दिया गया दान भले ही वह थोड़ा ही क्यों न हो, सुयोग्य को दिया गया ज्ञान अपने गुणों कारण स्वयं ही बढ़ते हैं। Масло в воде, тайна, рассказанная лицемеру, дар, данный достойному человеку, […]

Чанакья нити 14.1

पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि अन्नमापः सुभाषितम्।मूढः पाषाणखंडेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।। इस प्रथ्वी पर केवल तीन ही रत्न हैं, अन्न जल और मधुर वचन, मूर्खों ने पत्थर के टुकड़ों को रत्न बना दिया है| जीवन यापन के लिए अन्न जल की ही आवश्यकता है, रत्न हीरे पन्ने आपकी भूंख और प्यास को नहीं बुझा सकते हैं और इस समाज […]

Чанакья Нити 13.19

युगान्ते प्रचलेन्मेरुः कल्पान्ते सप्त सागराः।साधवः प्रतिपन्नार्थान्न चलन्ति कदाचन।। महापुरुषों के गुणों की चर्चा करते हुए कहते हैं, युग का अंत होने पर चाहे सुमेरु पर्वत अपने स्थान से हट जाए, कल्प का अंत होने पर सातों समुन्द्र भी विचलित हो जाएँ, लेकिन सज्जन पुरुष कभी भी अपने मार्ग से विचलित नहीं होते| Обсуждая качества великих […]

Чанакья Нити 13.14

यथा धेनु सहस्रेषु वत्सो गच्छति मातरम्।तथा यच्च कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति।। जैसे हज़ारों गायों के झुण्ड में भी बछड़ा अपनी माँ के पास ही जाता है, ऐसे ही मनुष्य के द्वारा किये गए कर्म उसके पीछे पीछे आते हैं| व्यक्ति अपना भविष्य, वर्तमान के कर्मों से निर्माण करता है| Точно также, как теленок идет к своей […]

Чанакья Нити 13.9

धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्वते।अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम्।। जो व्यक्ति अपने जीवन में धर्म, अर्थ (धन), काम और मौक्ष इनमे से किसी को भी प्राप्त नहीं कर पाता है,उसका जीवन बकरी के गले में निकले स्तन के सामान होता है जो किसी भी काम का नहीं है| Человек, который не может достичь дхармы(чести и праведности), артхи […]

Чанакья Нити 13.2

गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् ।वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः ॥ हम उसके लिए ना पछताए जो बीत गया. हम भविष्य की चिंता भी ना करे. विवेक बुद्धि रखने वाले लोग केवल वर्तमान में जीते है. Не будем сожалеть о пройденном. Давайте даже не будем беспокоиться о будущем. Благоразумные люди живут только настоящим.

Чанакья нити 12.19

जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः।स हेतु सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च।। जैसे एक-एक बूंद पानी डालने से घड़ा भर जाता है। इसी तरह विद्या, धर्म औरधन का भी संचय करना चाहिए। अभिप्राय यह है कि जैसे एक-एक बूंद डालते रहने से धीरे-धीरे घड़ा भर जाता है। इसी प्रकार धीरे-धीरे ज्ञान, धर्म तथा धन दौलत का भी संचय […]

Пролистать наверх